दयानंद शिववंशी
रोहतांग दर्रा हिमालय (भारत) में स्थित एक प्रमुख दर्रा है। यह मनाली को लेह से सड़क मार्ग द्वार जोड़ता है। यह दर्रा समुद्र तल से 4,111 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस दर्रे का पुराना नाम ‘भृगु-तुंग’ था, ‘रोहतांग’ नया नाम है। यहाँ से पहाडों, सुंदर दृश्यों वाली भूमि और ग्लेशियर का शानदार दृश्य देखा जा सकता है।
हिमाचल प्रदेश के लाहोल-स्पीति ज़िले का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला यह दर्रा कभी ‘भृगु तुंग’ के नाम से पुकारा जाता था। यह बौद्ध सांस्कृतिक विरासत के धनी लाहोल-स्पीति को हिन्दू सभ्यता वाले कुल्लू से प्राकृतिक रूप से बाँटता है। मनाली से रोहतांग दर्रे तक पहुँचने के लिए क़रीब पचास किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। यहाँ मौसम अचानक बदल जाता है। बर्फीली हवा से बचकर रहना पड़ता है अन्यथा तबीयत खराब होने का भय बना रहता है। रोहतांग दर्रा पार करने से लेकर वापिस आने तक बहुत ही जोखिम भरा पर्यटन होता है।
सुबह मनाली से यात्रा प्रारंभ की थी। यहाँ की पर्वत श्रृंखलाएँ पल-पल अपना रंग बदलतीं है। खूबसूरत दृश्यों को एकटक देखते रहिए पर जी नहीं भरता। सूर्य रश्मियों से पहाड़ों की खूबसूरती देखते ही बनती है। पहाड़ों पर ग्लेशियर पिघल कर झरनों का रूप ले रहे थे। पर ये क्या झरने जमने लगे। सड़क किनारे पहाड़ों से रिस रिस कर गिर रहे जलधार गिरते गिरते ही जम गये। स्फटिक की भाँति बहुत सुंदर, मनमोहक वो जलकण थे।
व्यास नदी के उद्गम स्थल व्यास गुफा पहुँचकर खूब बर्फ के साथ अठखेलियाँ की। भगवान भुवन भास्कर यूँ तो पहले ही उदित हो चुके थे किन्तु उत्तुंग हिमालय के पीछे थे। लेकिन अब सूर्य भगवान प्रत्यक्षतः अपनी सप्तरश्मियों के साथ उदीयमान थे। हम सबने दिनकर-आदित्य को प्रणाम किया। खड़े-खड़े ही अपलक हम उन्हें निहार रहे थे। स्वर्णिम सविता देवता की दिव्य आभा पूरे पहाड़ को और भी खूबरसूरत बना रही थी। क्षण-क्षण भर में बर्फीले पर्वत को कई रंगों में स्नान करते देखा। वाकई आह्लादकारी और विस्मयकारी दृश्य था। कुछ देर पश्चात बर्फीली हवाएँ चलने लगीं फिर हमने वापिस चलने का निर्णय लिया। शाम तक मनाली पहुँच गए। यात्रा खतरों से भरी थी पर आनन्ददायक अविस्मरणीय थी।