दुर्गेश तिवारी
सर्दी जैसे निकलता कोहरे जैसा धुंआ, प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण, स्वच्छ वातावरण। यह कोई सपना नही बल्कि काली मिट्टी से परिपूर्ण मध्य प्रदेश के उस स्थान का दृश्य है। जिसे भेड़ाघाट कहा जाता है। उद्गम से लेकर सागर समागम तक नर्मदा का जो तेज, जो सौंदर्य, जो अठखेलियाँ और जो अदाएँ दिखाई देती हैं वे जबलपुर के अलावा अन्यत्र दुर्लभ हैं। यहाँ नर्मदा ने हठ और तप करके अपना रास्ता भी बदला है। पहले कभी वह धुआँधार से उत्तर की ओर मुड़कर सपाट चौंड़े मैदान की ओर बहती थी। उसकी धार के ठीक सामने का सौंदर्य संभवतः नर्मदा को भी आकर्षित करता होगा। लगातार जोर मारती लहरों से चट्टानों का सीना चीरकर हजारों वर्ष के कठोर संघर्ष के बाद नर्मदा ने यह सौंदर्य पाया है जिसे निहारने देश ही नहीं, विदेशी पर्यावरण प्रेमी भी खिंचे चले आते हैं। संगमरमरी चट्टानों के बीच बिखरा नर्मदा का अनूठा सौंदर्य देखते न तो मन अघाता है और न आँखें ही थकती हैं।
भेड़ाघाट का इतिहास
भेड़ाघाट, तिलवाराघाट के आस-पास के क्षेत्र का इतिहास 150 से 180 करोड़ वर्ष पहले प्रारंभ होता है। कुछ वैज्ञानिक इसे 180 250 करोड़ वर्ष पुरानी भी मानते हैं। भेड़ाघाट के नाम को लेकर अनेक कहानियां प्रचलित हैं। प्राचीन काल में भृगु ऋषि का आश्रम इसी क्षेत्र में था। इसी स्थल पर नर्मदा का पवित्र बावनगंगा के साथ संगम होता है। बुंदेली लोक भाषा में भेड़ा का अर्थ भिड़ना या मिलना है। इस मत को मानने वालों के अनुसार इसी संगम के कारण इस स्थान का नाम भेड़ाघाट हुआ।
कुछ लोगों के अनुसार यह स्थान आज से लगभग 1,700 वर्ष पूर्व शक्ति का केंद्र था। शैव मतवालों के अलावा शक्ति के उपासक भी यहाँ आते थे। लगभग 10 वीं शताब्दी में त्रिपुरी के कल्चुरि राजाओं के शासनकाल में चैसठ योगिनी मंदिर का और विस्तार किया गया। इन सभी मतों के पीछे तर्क और प्रमाण का आधार है। इनमें इतना तो सच है कि इस स्थान को नर्मदा ने अतुलित सौंदर्य प्रदान किया है। लगभग 748 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह क्षेत्र आज शैव, वैष्णव, जैन तथा अन्य मत-मतांतर मानने वालों के लिए आस्था का केंद्र है। पर्यटन और सौंदर्य की दृष्टि से तो यह महत्वपूर्ण है ही। इस क्षेत्र में संगमरमरी चट्टानों के बीच नौका विहार करते हुए कुछ ऐसा प्रतीत होता है कि आप सच में किसी ऐसे लोक में आ गए हैं जिसकी कल्पना लोग सपने में ही करते है। नौका विहार करते समय नर्मदा के अलौकिक सौंदर्य के दर्शन होते हैं। बंदरकूदनी तक पहुँचते-पहुँचते पर्यटक संगमरमरी आभा से अभिभूत होता है और विभिन्न रंगों की रंगत लिए रंग-बिरंगे पत्थर उसे मुग्ध कर देते हैं।
कैसे पहुंचे
भेड़ा घाट जाने के लिए सबसे पहले मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में जाना होगा। जबलपुर शहर से भेड़ाघाट की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। जबलपुर से भेड़ाघाट जाने के लिए बस और प्राइवेट गाड़िया हर समय उपलब्ध रहती हैं। जबलपुर रेल सड़क व वायुयात्रा के माध्यम से सारे देश से जुड़ा हुआ है। हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन दिल्ली से प्रतिदिन जबलपुर के लिए रेल सेवा उपलब्ध है।
जबलपुर की चौपाटी
अगर आप भेड़ाघाट जाने की इच्छा रखते हैं तो जबलपुर में रात जरूर बिताएं और वहां की चैपाटी पर जाना न भूलें। विजयनगर व समदढ़िया माल व सदर में लगने वाली चैपाटी पर आपको पानीपूरी का कभी न भूलने वाला स्वाद मिलेगा। इसके अलावा चायनीज फूड बर्गर का देसी वर्जन दाबेली के रूप में आपको मिल जायेगा।