ऋषभ देव
रात का अंधेरा था, रास्ता जाना-पहचाना था और मैं चला जा रहा था एक नये सफर पर। उस रात के बारे में सोचता हूं तो खुशी होती है कि मैं उस दिन लौटा नहीं। अगर लौट आता तो बहुत कुछ मिस कर देता। मैं दूसरों को यही सलाह देता हूं कि जहां भी जाइए पूरी तैयारी के साथ जाइए। जब मैं अपने सभी सफरों के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि मेरी घुमक्कड़ी में प्लानिंग जैसी कोई चीज रही नहीं है। मैं जहां भी गया उसके पीछे कोई लंबी-खासी प्लानिंग और तैयारी नहीं रही। मन हुआ तो निकल गया एक सफर पर। इस बार भी मेरे साथ ऐसा ही हुआ और फिर क्या? कुछ ही घंटों के बाद हिमालय को लपककर छूने की कोशिश में था, खूबसूरत और बेधड़क वादियों के बीच।
शाम का वक्त था, मैं दिल्ली में ही था। तभी मैंने व्हाट्सएप्प पर अपने दोस्त का स्टे्टस देखा, वो उत्तराखंड के जोशीमठ में था। मैंने उसे काॅल किया तो उसने बताया, फूलों की घाटी जा रहा है। भूख लगी हो और खाना मिल जाने पर जो सुकून मिलता है, वही सुकून मुझे अपने दोस्त की इन बातों से मिल रहा था। मैं बहुत दिनों से कहीं जाने की सोच रहा था, लेकिन जगह नहीं खोज पा रहा था। एक स्टेट्स की वजह से मुझे एक नया सफर और छोटी-छोटी मंजिलें मिल गईं थीं। मैंने मन ही मन सोच लिया था कि मुझे वहीं पहुंचना हैं, पहाड़ों के बीच। दोस्त ने भी आने को बोल दिया। अपने रूम आया और रकसैक बैग में कुछ कपड़े रखे और निकल पड़ा बस स्टैंड की ओर।
मैदान से पहाड़ तक
मैं उत्तराखंड जा रहा था और महीना था अगस्त। यानी कि खूब बारिश हो रही थी। बारिश रास्ता बंद कर देती है और तब सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है। जिनको भी मैंने उत्तराखंड जाने के बारे में बताया, वो सभी जाने को मना कर रहे थे। इसलिए जब मैं बस स्टैंड जा रहा था, तो दिमाग में दो ही ख्याल आ रहे थे। एक तो वापस लौटने के बारे में था और दूसरा ख्याल पहाड़ का था। पहाड़ों की खूबसूरती के बारे में सोचकर मैंने जाने का निश्चय कर लिया। रात को आईएसबीटी कश्मीरी गेट से हरिद्वार के लिए बस पकड़ी। दिल्ली से हरिद्वार जाते वक्त ऐसा लगता है कि अपनी ही जगह जा रहा हूं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं लग रहा था। शायद इसलिए क्योंकि इस बार सफर हरिद्वार से बहुत आगे था।
ऋषिकेश।
मैं जिस सीट पर बैठा था, मेरे पीछे वाली सीट पर मेरी ही उम्र के लड़के थे। आपस में खूब हंसी-ठिठोली कर रहे थे, इन सबमें मैं सुन रहा था उनकी बातें। वो तुंगनाथ के बारे में बात कर रहे थे। उनमें से एक बाकी को तुंगनाथ की खूबसूरती के बारे में बता रहा था। मुझे अपना तुंगनाथ का सफर याद आ गया था, शायद मुझे घूमने का कीड़ा वहीं से लगा था। उनकी बातों में सबसे बुरा था, नशा। वो पहाड़ों पर जाकर हरे-भरे बुग्याल में नशा करने की बात कर रहे थे। घूमना बहुत अच्छी बात है। लेकिन बेहतरीन जगहों पर धुंआ उड़ाना बेहूदा लोगों की पहचान है। कुछ देर बाद मुझे नींद लग गई। सुबह आंख खुली तो हरिद्वार आ चुका था, मेरी पहली मंजिल।
ताजगी भरी सुबह
मैं बस से नीचे उतर गया, मैं बद्रीनाथ जाने वाली बस देख रहा था। मेरी किस्मत इतनी अच्छी निकली कि कुछ ही मिनटों में मुझे बस मिल गई और कुछ ही मिनटों बाद बस चल पड़ी। मैं अभी-अभी सफर करके आया था। अब फिर से एक और सफर पर निकल पड़ा। ये सफर काफी लंबा होने वाला था करीब 12 घंटे का सफर। जैसे-जैसे बस आगे बढ़ रही थी, अंधेरा भी छंटता जा रहा था। यहां की सुबह की ताजगी को मैं महसूस कर पा रहा था। दिल्ली और उत्तराखंड में एक बड़ा अंतर है, हवा का अंतर। इसी हवा को पाने के लिए लोग यहां आते हैं। सूरज निकल आया था और उसकी रोशनी हमारे चारों तरफ फैलनी लगी थी। सूरज के लिए ये दुनिया एक दिन और पुरानी हो गई थी। अभी तो सूरज से लंबी मुलाकात होने वाली थी, आज पूरा दिन इसी सूरज के साथ ही तो चलना था।
हरे-भरे पहाड़।
कुछ ही घंटों में बस पहाड़ों के बीच चल रही थी। मुझे अक्सर सफर के दौरान नींद नहीं आती है लेकिन इस सफर में बहुत ज्यादा नींद आ रही थी। ऐसा लग रहा था थकान हो रही है लेकिन अभी तो सफर शुरू ही नहीं हुआ था। बीच-बीच में झटका लगता तो नींद खुल जाती और आंख खुलने पर एक ही चीज दिखती, पहाड़। यहां पहाड़ को देखकर खुशी नहीं, गुस्सा आ रहा था। रोड को चौड़ा किया जा रहा था और उसके लिए पहाड़ को काटा जा रहा था। जो पहाड़ पिछले साल तक सुंदर दिखते थे, वो अब बंजर लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि किसी ने इसके चिथड़े कर दिए हों। हालांकि ये चैड़ीकरण अभी ज्यादा दूर नहीं गया है, लेकिन ऐसा ही विकास चलता रहा तो यहां की प्रकृति का सत्यानाश हो जाएगा। आगे चलने पर प्रकृति के सुंदर नजारे आने लगे थे। कुछ ही देर में देवप्रयाग आने वाला था। देवप्रयाग, वो जगह है जहां अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है। इन दोनों के संगम के बाद जो नदी बनती है, वो गंगा कहलाती है।
बहती नदी और वादियां
मैं इस बारिश में संगम देखना चाहता था। मैं देखना चाहता था कि इस मौसम में भी अलकनंदा और भागीरथी अलग-अलग रंग की रहती है या मटमैले रंग की। यही सोचते-सोचते आंख लग गई, जब आंख खुली तो रूद्रप्रयाग पार कर चुके थे। उत्तराखंड में होने के बावजूद गर्मी बहुत थी, धूप भी बहुत तेज थी। कुछ घंटों के सफर के बाद बस चमोली आ पहंची थी। यहां से मौसम ने करवट ले ली। बारिश शुरू हो गई थी। बारिश के दौरान पहाड़ों में जाना जोखिम भरा तो है, लेकिन इस मौसम में पहाड़ सबसे ज्यादा खूबसूरत लगने लगते हैं। बारिश की वजह से नदियां लबालब भरी हुईं थीं। हम जहा से जा रहे थे उसके ठीक नीच नदी बह रही थी और दूर तलक हरे-भरे जंगल दिखाई दे रहे थी।
पहाड़ों के बीच बहती नदी।
कभी-कभी मैं समझ नहीं पाता हूं कि पहाड़ में ज्यादा खूबसूरत क्या है? बर्फ या हरियाली। जिस रूप में पहाड़ दिखता है, खूबसूरत लगने लगता है। शायद ये पहाड़ की खासियत है कि वो दोनों ही रूप में ढल जाता है। अब पहाड़ अचानक से बदलने लगे थे। हरियाली अब थी, वे खूबसूरत अब भी लग रहे थे लेकिन अब उन्हें पूरा देखने के लिए गर्दन ऊंची करनी पड़ रही थी। मैंने इतने ऊंचे और खूबसूरत पहाड़ कभी नहीं देखे थे। रास्ते में कई गांव मिले और वहीं पहाड़ों पर हो रही सीढ़ीनुमा खेती भी देखने को मिली। यहां के गांव भी बेहद सुकून भरे लग रहे थे। चारों तरफ हरियाली से घिरे हुये और हरियाली के बीच ही उनके घर। इन घरों को देखकर ऐसा लग रहा था कि सारा सुकून भगवान ने यहीं पटक दिया हो। यहां बंजर का नाम मात्र भी नहीं था, मौसम, प्रकृति और रास्ता सब कुछ शानदार था।
मैं दस घंटे के सफर में जितना बोर हुआ था, इन नजारों को देखकर सब कुछ छूमंतर हो गया था। अब तो न थकावट थी और न ही नींद। शायद यही है कुछ नया देखने की ललक। अब जब इतना कुछ खूबसूरत और नया दिख रहा था तो लग रहा था कि सफर थोड़ा लंबा हो जाए। रास्ते में भूस्खलन भी हो रहा था, कई जगह तो बड़े-बड़े पत्थर गिर गये थे। जिसे हटाने में समय लगा और तब हमारी बस आगे बढ़ पाई। बड़े-बड़े पहाड़ दूर जाकर वादियों का रूप ले रहे थे। रास्ते में कई झरने भी गिर रहे थे। पहाड़ों से ऐसे गिरने वाले झरनों का कोई नाम नहीं होते। इनको देखकर बस खुश हुआ जा सकता है। यहां आकर तो परेशान व्यक्ति भी मुस्कुरा उठेगा। मैं तो आया ही इसलिए ही था और वही हो रहा था।
ये चमोली की खूबसूरती है।
जिंदगी में सुकून अगर कहीं है तो ऐसे ही खूबसूरत सफर में है। पहाड़ों में मंजिल से ज्यादा खूबसूरत सफर होता है। लेकिन इस बार मैं जिस सफर पर निकला था, उसकी मंजिल भी बेहद खूबसूरत थी। थोड़ी देर बाद बस ने मुझे मेरे पड़ाव पर छोड़ दिया, पड़ाव आगे के सफर का। जोशीमठ में मुझे मेरा दोस्त मिलने वाला था और यहीं रात भी यहीं गुजारनी थी। अगले दिन हमें लंबा सफर तय करना था लेकिन अब सफर बैठकर नहीं चलकर तय करना था। इसी चुनौती के लिए तो 20 घंटा सफर तय करके यहां आया था। अगले दिन हमारे पास रास्ता था लेकिन कभी-कभी रास्ता पता होने के बावजूद इस पर चलना आसान नहीं होता है। ये चुनौती ही तो हमें फूलों की घाटी तक ले जाने वाली थी। लेकिन उससे पहले अभी मुझे सबसे कठिन चीज करनी थी, इंतजार।