नवनीत कुमार जायसवाल
भारत प्राचीन से ही समृ़द्ध संस्कृति एवं विरासत का देश रहा है यहां अनेकता में एकता है। यहाँ के रग रग में एक जूनून है प्रत्येक स्थान में महापुरुष एवं भगवान के भ्रमण के स्थान मिलते है यही कारन है की भारत को स्वर्ग की धरती कहा जाता है यहाँ दर्शन के लिए बहुत स्थान है जो अब पर्यटन के नाम से जाना जाता है भारत में जो भी यहां पर्यटन के लिए आता है वह यहीं का होकर रह जाता है। इतिहास गवाह है कि यहां भगवान भी विहार के लिए स्वर्ग से आते थे और यहां की प्रकृतिक सौन्दर्य के प्रति आकर्षित हो जाते थे किन्तु अब ऐसा नही है लोग अब आध्यात्मिक पर्यटन के नाम पर पर्यटन स्थल जाते हैं और पिकनीक एवं छुट्टीयां मनाते हैं।
पर्यटन के क्षेत्र में आध्यात्मिक पर्यटन एक नवीन आस्था है भारत ने सदा से ही ‘‘अतिथी देवो भवः’’ के संस्कारों का परिपोषण किया है। आध्यात्मिक पर्यटन स्थल से तात्पर्य किसी धर्म या धार्मिक व्यक्ति से संबंधित स्थल नही होता बल्कि ऐसा स्थल जहां व्यक्ति अपने आंतरिक चेतना के विकास प्राप्ति करता है। और इसका अनुसरण करने वालो को किसी खास धर्म के संबधित होना जरूरी नहीं है। इस दृष्टि से भारत भूमि पर अनेक ऐसे पर्यटन स्थल है जंहा कुछ समय गुजारने पर व्यक्ति को चेतना का परिष्कार होने लगता है और उसमें लोक कल्याण का भाव तंरगित होने लगता है ऐसी भाव तंरगों का मानस पटल पर प्रविष्ट होने का रहस्य यह है कि उसक्षेत्र में वर्तमान अथवा पहले कभी सिद्ध व्यक्तियों ,फकीरों ,ऋषियों अथवा मुनियों द्वारा की गई तप साधना एंव लोकमंगल हेतु छोड़ी गई घनीभूत भाव तरंगें।
आध्यात्मिक पर्यटन का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल हिमालय क्षेत्र माना जा सकता है। जंहा अनेक ऋषियों ने सैकड़ो वर्ष तक साधना की उन्होने स्वयं के दुर्गुणो को हटा कर अपनी चेतना को गंगा जल जैसा निर्मल बना दिया था। उत्तराखंड में चार धाम ,पांच केदार ,शक्तिपीठ आदि क्षेत्र भी आध्यिात्मिक पर्यटन के अनेक स्थान हैै।
हरिद्वार के सप्तर्षि क्षेत्र में बने शातिकुंज आश्रम में रहकर अपने स्वभाव को परिष्कृत कर रही प्रकिया का प्रत्यक्ष अनुभाव कर सकते है। इसी स्थान पर ऋषि विश्वामित्र के बाद पंड़ित श्री राम शर्मा आचार्य ने गायत्री मंत्र की साधना करके क्षेत्र को लोकमंगल की भावनाओं से घनी भूत का दिया इन्ही भावनाओं को साकार करके के लिए मनमोहक वातावरण में सृजित विश्व की मानवीय मूल्यों व आदर्शो का संदेश के लिए महान शिक्षण केन्द्र देव संस्कृति विश्वविघालय के रूप में स्थापित किया गया। जहां देश-विदेश से आए हजारो शोधार्थी भारतीय संस्कृति को समझने और सिखने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं।